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Sunday, May 18, 2025

When someone speaks harsh words / , तो नाम स्मरण क्यों नहीं हो पाता

प्रस्तावना

जीवन की यात्रा में हम अनेक प्रकार के लोगों से मिलते हैं। कुछ मधुर बोलते हैं, तो कुछ अपने कटु शब्दों से हमारे अंतर्मन को झकझोर देते हैं। ऐसे समय में हम ईश्वर को याद करना तो दूर, अपना संयम तक खो बैठते हैं। मन में प्रतिशोध, क्रोध और अपमान की आग जलने लगती है। प्रश्न उठता है — "जब सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है ईश्वर को याद करने की, तब नाम स्मरण क्यों छूट जाता है?"

आइए, इस रहस्य को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझें।




1. मन की वृत्तियाँ और कटु वचन का प्रभाव

पतंजलि योगसूत्र में मन की वृत्तियों को बाधा बताया गया है। जब कोई कटु वचन बोलता है, तब हमारी चित्तवृत्तियाँ—राग, द्वेष, अहंकार, स्मृति—सक्रिय हो जाती हैं। मन बाहरी चोट की प्रतिक्रिया में उलझ जाता है। इस स्थिति में नाम जो चित्त को शांत करता है, वह हमारी चेतना से दूर हो जाता है।

"चित्त की अशांति ईश्वर के स्मरण की सबसे बड़ी शत्रु है।"


2. अहंकार की रक्षा में लिप्त मन

जब कोई हमारे अहं को ठेस पहुँचाता है, तो हमारी पहली प्रतिक्रिया होती है — "मुझे ऐसा क्यों कहा गया?" यही अहंकार भीतर शोर मचाता है, और इस शोर में ईश्वर का नाम सुनाई नहीं देता।

नाम स्मरण करने के लिए जिस विनम्रता और समर्पण की आवश्यकता होती है, वह अहंकार के हावी होते ही समाप्त हो जाती है।


3. क्रोध — नाम स्मरण का सबसे बड़ा अवरोध

भगवद्गीता कहती है:

"क्रोधात् भवति सम्मोहः, सम्मोहात् स्मृति विभ्रमः। स्मृति भ्रमशात् बुद्धि नाशः, बुद्धि नाशात् प्रणश्यति।"

जब क्रोध आता है, तो व्यक्ति की स्मृति भ्रमित हो जाती है, और वह यह भूल जाता है कि वह कौन है, उसका उद्देश्य क्या है। ऐसे में ईश्वर का स्मरण कैसे हो सकता है? कटु वचन क्रोध को जन्म देते हैं, और क्रोध नाम स्मरण को खा जाता है।


4. आत्मबोध की कमी

जब तक व्यक्ति को यह बोध नहीं होता कि “मैं यह शरीर, यह नाम, यह प्रतिष्ठा नहीं हूं, मैं तो ईश्वर का अंश हूं”, तब तक वह हर बात को व्यक्तिगत रूप से लेता है। जैसे ही कोई कटु बात कहता है, वह अपने 'स्व' की रक्षा में लग जाता है — जबकि वास्तविक ‘स्व’ तो शुद्ध आत्मा है जिसे कोई भी शब्द छू नहीं सकता।

आत्मबोध ही वह शक्ति है जो हमें अपमान में भी नाम स्मरण की ओर ले जा सकती है।


5. नाम स्मरण की गहराई और अभ्यास की भूमिका

नाम स्मरण कोई औपचारिक क्रिया नहीं, यह एक गहराई से जुड़ा हुआ अभ्यास है। यदि हम केवल संकट में ही नाम लेते हैं और सामान्य समय में भूल जाते हैं, तो कठिन क्षणों में वह नाम स्वतः नहीं आएगा।

जिस प्रकार हम सांस लेना भूलते नहीं, उसी प्रकार नाम स्मरण को भी स्वभाव बना लें, तभी वह अपमान और पीड़ा के क्षणों में भी हमारे साथ रहेगा।


6. मन का प्रशिक्षण (मन को नाम में लगाना)

रामकृष्ण परमहंस कहते थे:

“मन बंदर की तरह है — चंचल और उधम मचाने वाला। यदि उसे ईश्वर के नाम में लगाना है, तो अभ्यास और प्रेम दोनों चाहिए।”

जब कोई हमें कड़वे शब्द कहता है, तो वह मन रूपी बंदर तुरंत कूद जाता है, प्रतिक्रिया करने के लिए। लेकिन यदि वह मन नाम स्मरण का अभ्यास करता हो, तो तुरंत ईश्वर का स्मरण करेगा और कटु वचनों को भी सहजता से सह लेगा।


7. क्षमा और करुणा से उपजता है स्मरण का भाव

यदि हम किसी के कटु वचनों को सुनकर क्षमा का भाव रखें — यह सोचें कि "वह व्यक्ति स्वयं पीड़ा में है", तो मन शांत हो जाता है। उस शांति में नाम स्मरण का बीज अंकुरित होता है।

ईसा मसीह ने कहा था:

“हे प्रभु, इन्हें क्षमा कर देना, ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं।”

यह दृष्टिकोण अपनाकर हम अपमान को भी अध्यात्म की सीढ़ी बना सकते हैं।


8. सत्संग, साधना और संयम — त्रिविध साधन

इन तीनों से ही वह स्थिति आती है जब कोई कितना भी कुछ कहे, हमारा मन फिर भी नाम में लगा रहता है।

  • सत्संग से विवेक जागता है।

  • साधना से चित्त स्थिर होता है।

  • संयम से मन नियंत्रण में रहता है।


निष्कर्ष:

जब कोई कटु वचन कहता है, तो हमारा मन तुरंत प्रतिक्रिया देता है और उस प्रतिक्रिया की तीव्रता में नाम स्मरण छूट जाता है। परंतु यदि हमने जीवन में नाम को आत्मसात किया हो, नियमित अभ्यास किया हो, आत्मबोध जागृत किया हो, तो वह नाम कभी नहीं छूटेगा।

कटु वचनों को सुनते हुए भी जो मन ईश्वर का स्मरण कर सके, वही सच्चा साधक है।
और इसके लिए हमें चाहिए —
नियमित अभ्यास, आत्म-चिंतन, अहंकार की शुद्धि और प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण।


🌸 नाम स्मरण की शक्ति – एक आध्यात्मिक कविता 🌸
(कटु वचनों के बीच भी ईश्वर को याद कैसे करें?)


जब कटु वचन हवा में गूंजें,
मन के भीतर ज्वाला सुलगे।
क्रोध की लहरें उठने लगें,
शांति की नौका डगमग करे।।


उस क्षण जब अहंकार जागे,
"मैं" की पीड़ा भीतर लागे।
हर शब्द लगे जैसे तीर,
नाम स्मरण तब जाए पीड़।।


क्यों छूटे उस प्रभु का नाम?
जो दुख में है सबसे आराम।
जिसके स्मरण से मिलती शांति,
क्यों मन भूले वह पहचान?


क्योंकि मन है चंचल गाड़ी,
दौड़े जहाँ लगे उजियारी।
पर जब मिले अंधेरों का संग,
भूल जाए प्रभु का वो रंग।।


लेकिन जो करे निरंतर ध्यान,
रखे हर क्षण में प्रभु का गान।
उसका मन न डगमग होता,
नाम स्मरण से दुख भी सोता।।


कटु वचन बनें जब अग्नि-बाण,
तब कहो "राम", लो उसका नाम।
"शिव" की ध्वनि से हो प्रकाश,
अंतर में जले प्रेम का दीपक पास।।


मत देखो कौन क्या बोले,
प्रभु को देखो हर रंग खोले।
जो बुरा कहे, उसे भी दुआ दो,
नाम लो, और अंतः में सुकून संजो।।


नाम ही संजीवनी है,
नाम ही जीवन की वीणा।
कटु वचन क्या कर पाएंगे,
जब भीतर हो 'राम' की लीला।।
🌺


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